RANJ – Poetry

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वो कहने लगे,

तेरी ढ़लती शाम में आफ़ताब लेकर आऊंगा

तेरी जिंदगी में खुशियाँ,

बेहिसाब लेकर आऊंगा,

हमने कहा-

रहने दो जनाब !

की मेरी शाम भी कुछ हसीं कम नहीं

मेरी चांद की रौशनी भी इतनी भी कम नहीं

हो जाएंगी खुशियां बेहिसाब मेरी

अभी मेरे ज़िंदगी के घाव इतने भी नम नही

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